Friday, February 19, 2010

तुमने क्या सोचा...


तुमने क्या सोचा मैंने क्या समझा
इस ना समझी मैं बरसो गुजर गए
हर पल हर दिन उस सोच पर पछताता रहा
आँखों मैं आंसू दिल मैं कसक और
जुम्बा पर दर्द सहलाता रहा
अब हिम्मत नहीं थी नजरे उठाकर चालू
नजरों के सामने अन्धेरा छाता रहा
जब ठोकर लगी पैरों मैं आह तक नहीं निकली मुह से
लेकिन ये दर्द पल-पल गहराता रहा
अब अकेला हूँ ''साथ'' से डरता हूँ
यही वहम उम्र भर सताता रहा
हर दिवार हर कोने मैं उसी की तस्वीर दिखती हैं
बस नजरो से युही मन को बहलाता रहा....