Friday, November 27, 2009

Globle worming ki warning


ग्लोबल वार्मिंग सुनने मैं कितना साधारण शब्द लगता हैं ना, लेकिन इसके दुष्परिणाम इतने साधारण नहीं.. ग्लोबल वार्मिंग चीख-चीख कर यह वार्निंग दे रही हैं, अब संभल जाओ वरना आने वर्षो मैं प्रक्रति का रौद्र रूप देखना पड़ेगा. आज हम प्रक्रति का जितना दोहन कर रहे हैं, ग्लोबल वार्मिंग उसी का असर हैं. आदमी की बढती विलासिताए मूक प्राणियों के लिए भी अभिशाप बनती जा रही. सडको पर रेंगते वाहनों से निकलने वाला धुआ, बड़ते उद्योगिक क्षेत्र कम होता वन क्षेत्र भी ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं. वाहनों और ओद्योगिक क्षेत्रो से निकलने वाली गैसों को हमें ही कुछ हद तक कम करना होगा, तभी हम ग्लोबल वार्मिंग पर काबू पा सकेंगे. बिगड़ते पर्यावरण को बचाना हे तो लोगो को इसके लिए आगे आना होगा. उन्हें अपने वाहनों का कम से कम उपयोग करना होगा. उद्योगिक क्षेत्रो से निकलने वाली गैंसों पर भी हमें नियंत्रण करना होगा, तभी ग्लोबल वार्मिंग का असर कम होता दिखाई देगा. कटते  हुए पेड़ों को रोकना होगा. हमें पहले जैसा वातावरण फिर निर्मित करना होगा, जिसमे चारो तरफ हरियाली ही हरियाली दिखाई देती थी.आज हमारे ही कारन ये हरियाली सीमेंट-कांक्रीट मैं तब्दील हो गई हैं और बची हैं तो सिर्फ सुखी जमीं. जिस गति से शहर, महानगर फ़ैल रहे हैं, उसी गति से हमारी जिन्दगी के  दिन भी कम होते जा रहे हैं. यदि ग्लोबल वार्मिंग को हमने गंभीरता  से नहीं लिया तो इसके परिणाम भी बेहद गंभीर होंगे. ग्लोबल वार्मिंग के कारन आज मौसम हर वक्त बदल रहा हैं, जिससे  मलेरिया, डेंगू, फ्लू जैसी अनेक बीमारी कभी भी महामारी का रूप ले लेती हैं. समुद्र का जल स्तर बढ रहा हैं, छोटी प्रजातिया ख़त्म हो रही हैं, कही बाड़ की स्थिति निर्मित हो रही हैं तो कही सूखे को लोग झेल रहे हैं. और न जाने कितना प्रभाव धरती सहन कर रही हैं. इस समय ग्लोबल वार्मिंग का सबसे ज्यादा जिम्मेदार चीन, अमेरिका भारत हैं. यहाँ से निकलने वाली गैंसों से ही वायुमंडल पर विपरीत आसर  पड रहा हैं. इस संवेदनशील मुद्दे के लिए अब सभी का एकजुट होना पड़ेगा. ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए डेनमार्क के कोपेनहेगन मैं जो सम्मलेन होने वाला हैं उसमे सभी देशो के एक राय होना पड़ेगा तथा एक नई निति बनाकर सभी को काम करना होगा तभी इस भयावाह समस्या से निपटा जा सकेगा. आम नागरिको को भी छोटे छोटे उपायों को खोज कर उनपर अमल करना होगा तभी हम आने वाली परिस्थितियों से निपट सकेंगे. हमें फिर कुदरत को अपनाकर उसे पुराने स्वरूप मैं लाना होगा... याने फिर हरा-भरा वातावरण बनाना होगा...

Thursday, November 26, 2009

sanvednae yaa dikhava...


मुनाबाव मैं रहने वाला उस एक इंसान ने ये नहीं सोचा होगा की उसके साथ ऐसा भी होगा.. जब उसके यहाँ राहुल गाँधी पहुचे तो लगता हैं उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा होगा. और होना भी यही चाहिए.. इस मुनाबाव के नंदू ने अपने परिवार के पेट के साथ कल कांग्रेस के युवराज का भी पेट भर दिया. याने किसी गरीब की रोटी मैं  इतनी ताकत होती हैं की वो सोने  की चम्मच से खाना खाने वाला का पेट भी भर सकती हैं.. कांग्रेस और युवाओ की नई उम्मीद राहुल गाँधी हर उस गरीब के घर तो जा रहे जहाँ न खाने को अन्न हैं और न तन ढकने को कपडे हैं.. और उनकी करुण आवाज भी सुन रहे हैं. ये आवाज उनके कानो मैं कब तक रहती हैं. ये तो आने वाला समय ही बताएगा. जिस तरह राहुल गाँधी ने जो पहल शुरू की हैं क्या उनकी संवेदनाए हैं या महज लोगो के यहाँ जाकर उनकी सहानुभूति लेना हैं.. यदि वे इस पहल को साकार करना चाहते हैं उन्हें अपने साथ उन तमाम नेताओ को भी ले जाना होगा और उन्हें भी इन मासूमो के रहन सहन से परिचित करना होगा. तभी इन नेताओं के अंदर एक स्वच्छ इंसान की छवि पैदा होगी..और कुछ हद तक उन गरीब आंसुओं का बहना थमेगा जो अनवरत सरकार की उपेक्षाओ का शिकार हो रहे हैं. लोगो के घर रोटी और नहाने भर से उनके रहन सहन का अनुभव नहीं होता हैं.... राहुल व इनके सहयोगियों को  उनके यहाँ कम से कम चार-पांच दिन रहकर उनके साथ काम करके देखना होगा तथी उन्हें मालूम पड़ेगा की इनकी दुर्दशा क्या हैं.. और क्यों हुई हैं... उनसे उनकी वो आखरी समस्या पूछनी होगी, जिसको सुलझाने के लिए उनका शरीर हाडमांस मैं तब्दील हो गया.. राहुल गाँधी अभी जिस जगह बैठे वे वहां से भी इनका उत्थान कर सकते हैं..लेकिन उन्हें तो अनुभव लेना हैं...इस अनुभव के दौरान न जाने कितने लोगो की आँखे दम तोड़ देगी, और न जाने कितने लोगो का भरोसा उम्मीदों से भी उठ जायेगा.. फिर अनुभव न अनुभव काम आएगा और न पोजीशन.. यदि राहुल गाँधी को उन लोगो की पीड़ा महसूस करना हैं तो उन्हें उस दूरदराज के इलाको मैं भी जाना होगा जहाँ जाने के लिए कोई पर्याप्त साधन नहीं हैं और न उन सु सुविधाओ का १० प्रतिशत हिस्सा हैं जो शहरी लोगो के पास हैं.. यदि इन मासूम आँखों को जीवन की मुख्य धरा से जोड़ना हैं तो राहुल को भी अपनी सुख सुविधाओ को छोड़ इनके जैसा बनना होगा, तभी इनके साथ खाना खाने और इनके साथ रहने का सही मतलब निकलेगा और इनके लिए कुछ बेहतर हो सकेगा. आज भी गरीबी उन्मूलन योजनाए तथाकथित नेताओ की भेंट चढ़ जाती हैं..और बेचारे गरीब और गरीब हो जाते हैं.. न उन्हें रोजगार मुहेया होता हैं और न उनका विकास हो पता हैं, तभी इन्हें अपराध के लिए मजबूर होना पड़ता हैं और कितने ही मासूम परिवार तबाह हो जाते हैं. अब इनकी और देखना आवश्यक हैं... न ही तो.........

Wednesday, November 25, 2009

26/11... kayarta ka hamla....


365 दिन पहले की वो रात कोई भी भारतीय  नहीं भूल सकता. इस दिन ने हमारे मस्तिस्क पटल पर न केवल एक गुमनाम दहशत का बीज बो दिया, बल्कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया. 26 नवम्बर 2008 याने 26/11 को आज एक साल पूरा हो जायेगा, लेकिन इस एक साल मैं ham कितने मरबूत हुए हैं ये जानने  के लिए हमें अभी और कितने साल लग जायेंगे.. 26/11 के इस आतंकी हमले मैं  कितने ही परिवार उजाड़ गए जिनकी अभी तक कोई सुध नहीं ली गई और नही उन्हें जो सहायता राशी देना थी वो दी गई.  पीड़ित लोग अपने घावों मैं आज तक इस हमले का दर्द महसूस कर रहे हैं. भारत पर सबसे बड़े आतंकी हमले से पहले भी कितने हमले हुए लेकिन जितनी भी सरकारे रही उन्होंने इन हमलो से कोई सबक नहीं लिया. सभी अपनी राजनीती रोटिया देश को जलाकर सेंकने मैं लगे रहे. आतंकी सीरियल ब्लास्ट करते रहे और हमारा तंत्र उनकी गिनती करता रहा... अभी तक ये नहीं खोजा गया की खामिया हमारे तंत्र मैं कहा हैं. उसे कैसे ठीक किया जाये... सिर्फ मंच और टीवी के सामने खुदको एक्सपोज कर ये सफेद्फोश तथाकथिक लोग अपने मूल काम की इतिश्री करते रहे, भले ही लोगो का हित जाये भाड मैं. 26/11 को फिर ये किसी मंच पर खड़े होकर पांच मिनिट को मौन रख आने वाले साल इन्तजार करने लगेंगे..और नई कोई ऐसी तारीख का इन्जार करेंगे, जिसमे उन्हें कोई एसा मौका मिले..आतंकवाद पर राजनीती करने वाले भी लगता हैं आतंक को शह दे रहे हैं. इन्हें उन  मासूमों की चीख नहीं सुनाई देती जो कभी मुस्कुराते थे....आज जरूरत हैं इन लोगो को अपना स्वार्थ छोड़ देश हीत  मैं काम करने की. तभी 26/11 जैसी अमानविक घटनाएं नहीं हो पाएंगी... और उन शहीदों को सच्ची श्रधान्जली मिलेगी जिन्होंने देश के लिए वरन अपने भाइयो को बचने  के लिए अपनी जान दे दी. कुछ पैसो के लिए जो अपना इमान बेच देंते हैं वे भी उन ब्लास्ट पीडितो का चेहरा देखें  और अपने परिवार के किसी सदस्य के होने का एहसास करे, फिर वो भी इस कायरता से दूर हो जायेंगे.. और किसी की जान व् घर उजड़ने की जुर्रत नहीं करेंगे...आज अमेरिका ने भी आतंवाद के भयावह चेहरे को देख लिया हैं, वो इस चेहरे को अपने पर हावी नहीं होने देने के लिए नित नए प्रयोग कर रहा हैं और उसमे सफलता भी हासिल कर रहा हैं. फिर हम क्यों इतना पीछे हैं. हमारे यहाँ ही क्यों सीरियल ब्लास्ट होते हैं, हम क्यों नहीं इनसे सबक लेते हैं, हममे  कहा खामिया हैं. इसे हमें ही खोजकर  ख़त्म करना होगा. नहीं तो हम हमेशा डरे, सहमे रहेंगे or आतंकवाद हम पर तांडव करता रहेगा.....

Monday, November 23, 2009