Tuesday, November 2, 2010

आओं एक दीप जालाये...

अंधियारों से लड़ने की लिए
आओं एक दीप जालाये...
सभी को साथ लेकर चले हम
कुछ ऐसा हम कर जाए
आओं एक दीप जलाये....
समाज की कुरीतियों को
इस दीपक मैं जालाए
सब का आदर करें हम
सब के साथ खुशिया मनाये
आओं एक दीप जलाए....
दीपक की तरह शांत रहे हम
हर तरफ उजियारा फैलाए
अपनी लौ न बुझने दे
एक नया और दीपक जालाये
आओं एक दीप जालाये....
सभी दोस्तों को दीपोत्सव की शुभकामनाएं

Thursday, May 6, 2010

आज मेरी आँखे रोंती हैं...


आज मेरी आँखे रोंती हैं
उन कोमल हाथों के लिए
जिसने बचपन मैं इन
आख्नों को पुचकारा था
आज मेरा मन शांत हैं
उन बाँतो के लिए
जिसने मेरे जीवन को
इन उंचाइयो तक पहुंचाया हैं
आज मैं उदास हूँ इसलिए
माँ तेरा हाथ सिर पर नहीं हैं
अब ऐसा लगता हैं
के ये आसमा गुम सा गया हैं
आज मैं अकेला हूँ इसलिए
के जीवन के कठिन डगर मैं
तू साथ नहीं हैं
फिर भी तेरा साया साथ चलता हैं
आज मैं चुप हुईं इसलिए
के तू मुझसे बोलती नहीं
लेकिन मेरा मन हमेशा
तुझसे बात करता हैं
आज तेरा
भोलापन याद आता हैं
जब मुझे डांटकर सुला देती थी
लेकिन अब दिन और रात
एक जैसे हो गए हैं
माँ तुने कितनी तकलीफों मैं
मेरा कद बढाया
लेकिन आज भी मैं
छोटा रह गया...
माँ तू कितनी कोमल हैं
तू कितनी शांत हैं
तेरी करुणा के आगे
सब बइमान हैं.....................

Tuesday, March 30, 2010

रास्ते पर निकलता हूँ


रास्ते पर निकलता हूँ 
हर कदम गिनता हूँ 
कही ठोकर न लग जाये फिर से 
इसलिए निगाहें झुका कर चलता हूँ.... 
कभी कांटो से डर लगता था 
अब कांटो पर चलता हूँ 
जिन्दगी के हर मोड़ पर 
इस चुभन को मासूस करता हूँ .... 
चला था किसीका साथ ढूंढने 
अब साथ मैं चलने वालो से डरता हूँ 
कभी सभी पर था विश्वास मुझको 
अब खुद पर विश्वास करने से डरता हूँ ..... 
भीड़ मैं चहरे पहचानने की आदत थी 
अब चेहरों की हंसी से डरता हूँ... 
न जाने क्यू एक वहम सताता हैं मुझकों 
के मैं गलत था.. मैं गलत था... मैं गलत था...

Sunday, March 7, 2010

हे नारी


हे नारी 
तुझमें पीढियां समाई हैं
तेरे आँचल ने 
इस संसार को छाँव दी हैं
तेरे प्यार ने 
लोगों की घर्णा मिटाई हैं
तेरे विचारों से 
हमनें नई दिशा पाई हैं
तेरे बलिदान से 
हमें नया जीवन मिला हैं
तेरी करुना से 
इस संसार ने हमें अपनाया हैं
तेरे कोमल हाथों ने 
हमारा व्यक्तित्व को संवारा हैं 
तेरे मजबूत इरादों ने 
हमें जीने का लक्ष्य बताया हैं
तेरे आंसुओं ने
हमें प्यार करना सिखाया हैं
तेरे सम्मान ने 
हमें समाज का आइना दिखाया हैं
तू महान, तू भगवान् हैं
तुझमे ही ये स्रष्टि विराजमान हैं
तेरे चरणों के आगे 
ये जीवन बलिदान हैं 
तुझे नमन,,, तुझे नमन......

Friday, February 19, 2010

तुमने क्या सोचा...


तुमने क्या सोचा मैंने क्या समझा
इस ना समझी मैं बरसो गुजर गए
हर पल हर दिन उस सोच पर पछताता रहा
आँखों मैं आंसू दिल मैं कसक और
जुम्बा पर दर्द सहलाता रहा
अब हिम्मत नहीं थी नजरे उठाकर चालू
नजरों के सामने अन्धेरा छाता रहा
जब ठोकर लगी पैरों मैं आह तक नहीं निकली मुह से
लेकिन ये दर्द पल-पल गहराता रहा
अब अकेला हूँ ''साथ'' से डरता हूँ
यही वहम उम्र भर सताता रहा
हर दिवार हर कोने मैं उसी की तस्वीर दिखती हैं
बस नजरो से युही मन को बहलाता रहा....

Monday, January 25, 2010

हमारा गणतन्त्र...


आज हमारा गणतन्त्र ६१ साल का हो जाएगा. इस ६१ साल को जगह-जगह याने पुरे देश मैं बच्चे से लेकर उम्र दराज तक इसे जश्न के रूप मैं मनायेंगे, यह  गणतन्त्र जैसे-जैसे आगे बढता जा रहा हैं वैसे- वैसे ये भी उम्र दराज होते जा रहा हैं. अब ये पहले जैसा नहीं रहा. जिसकी तैयारियां १ या दो महीने पहले से शुरू हो जाती थी. अब ये सिर्फ एक दिन का राष्ट्रीय पर्व बनकर रह गया. हमारी युवा पीढ़ी को इसके मायने तक नहीं मालूम. क्यों मनाया जाता हैं गणतन्त्र इस बात से आज भी वे अनभिज्ञ हैं. बदलते दोर ने जहाँ गणतन्त्र को हमारे तन्त्र से लगभग छीन लिया, वही नीत नए दिवसों ने अपनी जगह बना ली. इसका मुख्य कारण सरकारी उदासीनता भी हैं और हम देशवासियों का इसके प्रति बेजान रुख.  क्यों हम हमारे संविधान को भूल जाते हैं.. क्यों हम पर पच्शिमी सभ्यता हावी हो जाती हैं, क्यों की यहाँ हमें किसी बात का कोई डर नहीं हैं और जिसे डर नहीं होता वो कुछ भी कर व भुला सकता हैं. सविधान के ६० साल गुजर जाने के बाद ऐसा लगता मानो ये भी बुढा होने लगा हो, क्यूकि हर बुजुर्ग आदमी को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती हैं, जो आजका फैशन बन गया हैं और नहीं उनके अनुभवों का स्मरण किया जाता हैं. २६ जनवरी १९५० को जो संकल्प लिए थे, वो संकल्प ही हमारे देश के गण तोड़ने पर आमदा हैं और इन तथाकथित गणों के कारण ही हमारा संविधान शर्मसार हुआ हैं और हो रहा हैं. आज जरूरत हैं इस ६० साल पुराने संविधान को जानने की और इसकी उन विषमताओं को दूर करने की जिसके कारण आज का भारतीय संविधान से पूरी तरह परिचित नहीं हैं..... जय हिंद.....

Thursday, January 21, 2010

ख़ुशी मिले तो कबूल करना...


 ख़ुशी मिले तो कबूल करना
दुःख मिले तो कबूल करना
ये ' इंसानों'  की दुनिया हैं दोस्तों
ठोकर मिले तो ' महसूस' करनाl
ख़ुशी मिले तो उसे कबूल करना...दुश्मनों से क्यों डरना हमें
वो ही जीना सिखाते हैं...
सच्चाई से  हमें वाकिफ कराते  हैं
और अजनबी को गले लगाते हैं ll
ख़ुशी मिले तो उसे कबूल  करना....हर दर्द मैं 'अपने' साथ देते हैं
दुश्मन तो जख्म सहलाते हैं
तड़पता तो इंसान ही हैं
'दूसरे' तो मजाक उड़ाते हैं ll
ख़ुशी मिले तो उसे कबूल करना...कहने से मैं भी डरता हूँ
डर-डर के मैं भी मरता हूँ
मरने का कोई गम नहीं मुझको
बस तेरी परवाह मैं करता हूँ ll
ख़ुशी मिले तो उसे कबूल करना...

Sunday, January 17, 2010

दो वक्त का निवाला ...



दो वक्त का निवाला
मुझे भी चाहिए 
जीने का सहारा
मुझे भी चाहिए.. 
सड़को पर रहना
अब अच्छा नहीं लगता
एक सपनों का आशियाना
मुझे भी चाहिए..
अच्छे कपड़े पहनू
ये मेरी भी तमन्ना हैं
इसे पूरी करने वाला
कोई शख्श
मुझे भी चाहिए..
कोई मेरे सिर पर हाथ फेरे
ऐसा दुलार
मुझे भी चाहिए..
वो मां की लोरी
वो पिता की गोद
वो बहन की राखी
मुझे भी चाहिए..
कोई इन बहतीं आँखों से
आंसूं पोछे
ऐसा प्यार
मुझे भी चाहिए..
यह बचपन भी बड़ा हो सके
ऐसा परिवार
मुझे भी चाहिए...