Thursday, November 26, 2009

sanvednae yaa dikhava...


मुनाबाव मैं रहने वाला उस एक इंसान ने ये नहीं सोचा होगा की उसके साथ ऐसा भी होगा.. जब उसके यहाँ राहुल गाँधी पहुचे तो लगता हैं उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा होगा. और होना भी यही चाहिए.. इस मुनाबाव के नंदू ने अपने परिवार के पेट के साथ कल कांग्रेस के युवराज का भी पेट भर दिया. याने किसी गरीब की रोटी मैं  इतनी ताकत होती हैं की वो सोने  की चम्मच से खाना खाने वाला का पेट भी भर सकती हैं.. कांग्रेस और युवाओ की नई उम्मीद राहुल गाँधी हर उस गरीब के घर तो जा रहे जहाँ न खाने को अन्न हैं और न तन ढकने को कपडे हैं.. और उनकी करुण आवाज भी सुन रहे हैं. ये आवाज उनके कानो मैं कब तक रहती हैं. ये तो आने वाला समय ही बताएगा. जिस तरह राहुल गाँधी ने जो पहल शुरू की हैं क्या उनकी संवेदनाए हैं या महज लोगो के यहाँ जाकर उनकी सहानुभूति लेना हैं.. यदि वे इस पहल को साकार करना चाहते हैं उन्हें अपने साथ उन तमाम नेताओ को भी ले जाना होगा और उन्हें भी इन मासूमो के रहन सहन से परिचित करना होगा. तभी इन नेताओं के अंदर एक स्वच्छ इंसान की छवि पैदा होगी..और कुछ हद तक उन गरीब आंसुओं का बहना थमेगा जो अनवरत सरकार की उपेक्षाओ का शिकार हो रहे हैं. लोगो के घर रोटी और नहाने भर से उनके रहन सहन का अनुभव नहीं होता हैं.... राहुल व इनके सहयोगियों को  उनके यहाँ कम से कम चार-पांच दिन रहकर उनके साथ काम करके देखना होगा तथी उन्हें मालूम पड़ेगा की इनकी दुर्दशा क्या हैं.. और क्यों हुई हैं... उनसे उनकी वो आखरी समस्या पूछनी होगी, जिसको सुलझाने के लिए उनका शरीर हाडमांस मैं तब्दील हो गया.. राहुल गाँधी अभी जिस जगह बैठे वे वहां से भी इनका उत्थान कर सकते हैं..लेकिन उन्हें तो अनुभव लेना हैं...इस अनुभव के दौरान न जाने कितने लोगो की आँखे दम तोड़ देगी, और न जाने कितने लोगो का भरोसा उम्मीदों से भी उठ जायेगा.. फिर अनुभव न अनुभव काम आएगा और न पोजीशन.. यदि राहुल गाँधी को उन लोगो की पीड़ा महसूस करना हैं तो उन्हें उस दूरदराज के इलाको मैं भी जाना होगा जहाँ जाने के लिए कोई पर्याप्त साधन नहीं हैं और न उन सु सुविधाओ का १० प्रतिशत हिस्सा हैं जो शहरी लोगो के पास हैं.. यदि इन मासूम आँखों को जीवन की मुख्य धरा से जोड़ना हैं तो राहुल को भी अपनी सुख सुविधाओ को छोड़ इनके जैसा बनना होगा, तभी इनके साथ खाना खाने और इनके साथ रहने का सही मतलब निकलेगा और इनके लिए कुछ बेहतर हो सकेगा. आज भी गरीबी उन्मूलन योजनाए तथाकथित नेताओ की भेंट चढ़ जाती हैं..और बेचारे गरीब और गरीब हो जाते हैं.. न उन्हें रोजगार मुहेया होता हैं और न उनका विकास हो पता हैं, तभी इन्हें अपराध के लिए मजबूर होना पड़ता हैं और कितने ही मासूम परिवार तबाह हो जाते हैं. अब इनकी और देखना आवश्यक हैं... न ही तो.........

1 comment:

www.जीवन के अनुभव said...

vaakai aap bahut achcha likhate.....
aaj ek aam insaan ki bhi samvednaye to mar chuki hai. fir mahalo me rahane vaale kya samajhege unaki halat jinake paas ek vakt ka khana nahi. aur fir atithi devo bhavah ki kahavat charitharth hone vale is desh me ek din me aap kisi k ghar ki vastvik stithi kha tak samajh sakate hai.