Sunday, January 17, 2010
दो वक्त का निवाला ...
दो वक्त का निवाला
मुझे भी चाहिए
जीने का सहारा
मुझे भी चाहिए..
सड़को पर रहना
अब अच्छा नहीं लगता
एक सपनों का आशियाना
मुझे भी चाहिए..
अच्छे कपड़े पहनू
ये मेरी भी तमन्ना हैं
इसे पूरी करने वाला
कोई शख्श
मुझे भी चाहिए..
कोई मेरे सिर पर हाथ फेरे
ऐसा दुलार
मुझे भी चाहिए..
वो मां की लोरी
वो पिता की गोद
वो बहन की राखी
मुझे भी चाहिए..
कोई इन बहतीं आँखों से
आंसूं पोछे
ऐसा प्यार
मुझे भी चाहिए..
यह बचपन भी बड़ा हो सके
ऐसा परिवार
मुझे भी चाहिए...
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2 comments:
ह्रïदय से निकली खूबसूरत रचना है आपकी यह कविता। बेहतर अभिव्यक्ति। अब मुझे भी अच्छा नहीं लगता सड़कों पर रहना..... मुझे सबसे गजब की लाइन लगी। यूं तो हर अर्थपूर्ण और सोने के महल में सोने वालों को सोचने पर विवश करतीं हैं।
hraday ko chhu jane vali rachana.
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