Thursday, December 31, 2009


1 comment:

Vivek Gupta said...

गुड जोब. बहुत अच्छी कविता है. अच्छे शब्द हैं, अच्छी भावनाएं हैं. और सबसे बडी बात, यह ज़बान पर बैठ जाने वाली आसान कविता है. अब तुम कवि के तौर पर निखर रहे हो. हां, लेकिन प्रूफ़ की गलतियां ना हों, इसका ध्यान ज़रूर रखो. गैरों के लिए अच्छी निगाह रखना तो अच्छी बात है, पर उसे "गेरों" लिखना अच्छी बात नहीं है. बहरहाल, नव वर्ष की शुभकामनाएं.
विवेक गुप्ता, भोपाल